बैठ जाता हूँ मिटटी पे अक्सर,,,,
क्योंकि मुझे अपनी औकात अच्छी लगती है।
मैंने समुन्दर से शिखा है जीने का सलीखा ,
चुपचाप से रहना और अपनी मौज में रहना।
चाहता तो हूँ की
ये दुनिया
बदल दू
पर दो वक़त की रोटी के
जुगाड़ में फुर्सत नहीं मिलती दोस्तों
महँगी से महँगी गढ़ी पहन कर देख ली ,
पर वकत फिर भी मेरे हिसाब से
कभी ना चला।
यु ही हम दिल को साफ रखा करते थे ,,
पता नहीं था की ,किस्मत
चेहरे की होती है "
अगर खुदा नहीं है तो उसका जिकर क्यों ??? दर्शन राणा लुधिअना
और अगर खुदा है तो फिर फ़िक्र क्यों ???
दो बाते इंसान को अपनों से दूर कर देती है ,
एक उसका 'अहम दूसरा उसकावहम ,,,,,,
जिन्दगी में कुछ पाना है तो तरीके बदलो ,,,,इरादे नहीं ,,,,…
ग़ालिब ने खूब है :ऐ चाँद तू किस महजब का है
ईद भी तेरी और करवा चौथ भी तेरा
No comments:
Post a Comment