- दर्शन राणा
शुभ विचार
ये चन्द पंक्तियाँ लिख रहा हूँ ,गलतियों से जुदा तू भी नहीं,मैं भी नहीं।
दोनों इन्सान है ,खुदा तू भी नहीं,मैं भी नहीं ??
तू मुझे ,और मैं तुजे, इल्जाम देता हूँ, .
मगर अपने अन्दर जानकता तू भी नहीं,और मैं भी नहीं,,,
गलतफमियो ने कर दी ,दोनों में पैदा दूरिया।
वर्ना फितरत का बुरा तू भी नहीं ,मैं भी नहीं,,,,
एक पत्थर एक बार मंदिर जाता है ,,बगवान बन जाता है। इंसान हर रोज मंदिर जाता है फिर भी पत्थर ही रह जाता है ???
एक औरत अपने बेटे को जन्म देने के लिये अपनी सुन्दरता त्याग देती है। और वही बेटा एक सुन्दर बीवी के लिए अपनी माँ को त्याग देता है ???
जीवन में हर जगह हम "जीत "चाहते,,सिर्फ फूल वाली दुकान ऐसी है। जहाँ हम कहते है कि "हार "चाहीए ,क्योंकि हम बगवान से जीत नहीं सकते ???
वक्त का पता नहीं चलता ,अपनों के साथ,पर अपनों का पता चलता है वकत के साथ। वकत नहीं बदलता अपनों के साथ ,पर अपने जरूर बदलते है वकत के साथ ???
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